Wednesday, March 3, 2010

हम तो इक अख़बार से

जाने किस उन्वान से लिखी हुयी तहरीर हैं
हम तो इक अख़बार से काटी हुयी तस्वीर हैं
१. उन्वान- शीर्षक

लफ्ज़ हैं उलझे हुए जुमले भी बेतरतीब हैं
साजिशी ज़हनों की हम लिखी हुयी तफसीर हैं
1.तफसीर- व्याख्या

फूल से भी नाज़ुक हैं अगर समझा गया
और अगर छेड़ा गया तो फिर हमीं शमशीर हैं

मुत्तहिद होते अगर तो दुनिया हमारे बस में थी
मुन्तशिर होकर तो हम टूटी हुयी ज़ंजीर हैं
१.मुत्तहिद- इकठ्ठा, २.मुन्तशिर- बिखरा हुआ

उनसे अपने मुआमले भी हल ना आसिफ हो सके
और दुनिया की नज़र में साहिबे तदबीर हैं
1. साहिबे तदबीर- गहरी सोच समझ वाला


बारिशों के मौसम में

बारिशों के मौसम में बादलों कि छाँव में
फिर मुझे वो याद आये इन हसीं फिजाओं में

शायद अपनी जुल्फों को उसने खोल रखा है
भीनी भीनी खुशबू है आज इन हवाओं में

हम तुम्हें बतायेंगे प्यार किसको कहते हैं
शहर से कभी आना तुम हमारे गाँव में

ये सजा मिली हमको अपनी साफगोई की
हैं जुबान पर ताले बेड़ियाँ हैं पाँव में

दिल को जिस से मिलने की आस भी नहीं आसिफ
रोज़ याद आता है मुझ को वो दुआओं में