आसां अपनी रह करता मैं तो अच्छा था
यूँ मुश्किल में ना घिरता मैं तो अच्छा था
तेरी आँखें, तेरी जुल्फें, तेरे जलवे
ये अरमां गर ना करता मैं तो अच्छा था
तुझ से मिल कर तो मैं रोता रहता हूँ
तुझ को खोकर भी हँसता मैं तो अच्छा था
ये कैसी बेबसी है, ये कैसी बेकली है
तेरी ख्वाहिश ना करता मैं तो अच्छा था
मुझे दुनिया ने पूछा, ना पूछा रब ने
तेरी खातिर ना मरता मैं तो अच्छा था
Thursday, December 30, 2010
Sunday, August 15, 2010
आवाज़ दे रहा है!
हर कतरा मेरे खूं का आवाज़ दे रहा है
हर ज़र्रा मेरी जां का आवाज़ दे रहा है
मंजिल के भूले भटके नाराज़ रास्तों को
ये रिश्ता तेरा मेरा आवाज़ दे रहा है
चल उठ के फिर से चल तो अनजान से सफ़र
हर लम्हा आने वाला आवाज़ दे रहा है
उलझन में क्यूं हो यारो मिट जायेगा अंधेरा
नन्हा सा इक जुगनू आवाज़ दे रहा है
अहसां वो मुझ पे कर के नाराज़ हो गया है
दिल मेरा उसको रह रह आवाज़ दे रहा है
हर ज़र्रा मेरी जां का आवाज़ दे रहा है
मंजिल के भूले भटके नाराज़ रास्तों को
ये रिश्ता तेरा मेरा आवाज़ दे रहा है
चल उठ के फिर से चल तो अनजान से सफ़र
हर लम्हा आने वाला आवाज़ दे रहा है
उलझन में क्यूं हो यारो मिट जायेगा अंधेरा
नन्हा सा इक जुगनू आवाज़ दे रहा है
अहसां वो मुझ पे कर के नाराज़ हो गया है
दिल मेरा उसको रह रह आवाज़ दे रहा है
Wednesday, March 3, 2010
हम तो इक अख़बार से
जाने किस उन्वान से लिखी हुयी तहरीर हैं
हम तो इक अख़बार से काटी हुयी तस्वीर हैं
१. उन्वान- शीर्षक
लफ्ज़ हैं उलझे हुए जुमले भी बेतरतीब हैं
साजिशी ज़हनों की हम लिखी हुयी तफसीर हैं
1.तफसीर- व्याख्या
फूल से भी नाज़ुक हैं अगर समझा गया
और अगर छेड़ा गया तो फिर हमीं शमशीर हैं
मुत्तहिद होते अगर तो दुनिया हमारे बस में थी
मुन्तशिर होकर तो हम टूटी हुयी ज़ंजीर हैं
१.मुत्तहिद- इकठ्ठा, २.मुन्तशिर- बिखरा हुआ
उनसे अपने मुआमले भी हल ना आसिफ हो सके
और दुनिया की नज़र में साहिबे तदबीर हैं
1. साहिबे तदबीर- गहरी सोच समझ वाला
हम तो इक अख़बार से काटी हुयी तस्वीर हैं
१. उन्वान- शीर्षक
लफ्ज़ हैं उलझे हुए जुमले भी बेतरतीब हैं
साजिशी ज़हनों की हम लिखी हुयी तफसीर हैं
1.तफसीर- व्याख्या
फूल से भी नाज़ुक हैं अगर समझा गया
और अगर छेड़ा गया तो फिर हमीं शमशीर हैं
मुत्तहिद होते अगर तो दुनिया हमारे बस में थी
मुन्तशिर होकर तो हम टूटी हुयी ज़ंजीर हैं
१.मुत्तहिद- इकठ्ठा, २.मुन्तशिर- बिखरा हुआ
उनसे अपने मुआमले भी हल ना आसिफ हो सके
और दुनिया की नज़र में साहिबे तदबीर हैं
1. साहिबे तदबीर- गहरी सोच समझ वाला
बारिशों के मौसम में
बारिशों के मौसम में बादलों कि छाँव में
फिर मुझे वो याद आये इन हसीं फिजाओं में
शायद अपनी जुल्फों को उसने खोल रखा है
भीनी भीनी खुशबू है आज इन हवाओं में
हम तुम्हें बतायेंगे प्यार किसको कहते हैं
शहर से कभी आना तुम हमारे गाँव में
ये सजा मिली हमको अपनी साफगोई की
हैं जुबान पर ताले बेड़ियाँ हैं पाँव में
फिर मुझे वो याद आये इन हसीं फिजाओं में
शायद अपनी जुल्फों को उसने खोल रखा है
भीनी भीनी खुशबू है आज इन हवाओं में
हम तुम्हें बतायेंगे प्यार किसको कहते हैं
शहर से कभी आना तुम हमारे गाँव में
ये सजा मिली हमको अपनी साफगोई की
हैं जुबान पर ताले बेड़ियाँ हैं पाँव में
दिल को जिस से मिलने की आस भी नहीं आसिफ
रोज़ याद आता है मुझ को वो दुआओं में
Wednesday, February 24, 2010
चल उठ चलें
चल उठ चलें कोशिश करें
कुछ फासिले हम कम करें
उल्फत यहाँ उल्फत वहां
कुछ तल्खियाँ हम कम करें
ये दूरियां मजबूरियां
ना हों यहाँ ना हों वहां
ये आरज़ू ये जुस्तजू
कुछ तुम करो कुछ हम करें
रिश्ते सभी हों मोहतरम
मौसम सरद हो कि गरम
पिघले बरफ महके फिजा
शोलों को हम शबनम करें
मैं लूँ सबक तू दे अगर
तू दे अगर मैं लूँ सबक
गीता पढ़ें कुरआँ पढ़ें
आदत यही अब हम करें
कुछ फासिले हम कम करें
उल्फत यहाँ उल्फत वहां
कुछ तल्खियाँ हम कम करें
ये दूरियां मजबूरियां
ना हों यहाँ ना हों वहां
ये आरज़ू ये जुस्तजू
कुछ तुम करो कुछ हम करें
रिश्ते सभी हों मोहतरम
मौसम सरद हो कि गरम
पिघले बरफ महके फिजा
शोलों को हम शबनम करें
मैं लूँ सबक तू दे अगर
तू दे अगर मैं लूँ सबक
गीता पढ़ें कुरआँ पढ़ें
आदत यही अब हम करें
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