Wednesday, March 3, 2010

हम तो इक अख़बार से

जाने किस उन्वान से लिखी हुयी तहरीर हैं
हम तो इक अख़बार से काटी हुयी तस्वीर हैं
१. उन्वान- शीर्षक

लफ्ज़ हैं उलझे हुए जुमले भी बेतरतीब हैं
साजिशी ज़हनों की हम लिखी हुयी तफसीर हैं
1.तफसीर- व्याख्या

फूल से भी नाज़ुक हैं अगर समझा गया
और अगर छेड़ा गया तो फिर हमीं शमशीर हैं

मुत्तहिद होते अगर तो दुनिया हमारे बस में थी
मुन्तशिर होकर तो हम टूटी हुयी ज़ंजीर हैं
१.मुत्तहिद- इकठ्ठा, २.मुन्तशिर- बिखरा हुआ

उनसे अपने मुआमले भी हल ना आसिफ हो सके
और दुनिया की नज़र में साहिबे तदबीर हैं
1. साहिबे तदबीर- गहरी सोच समझ वाला


7 comments:

  1. मुत्तहिद होते अगर तो दुनिया हमारे बस में थी
    मुन्तशिर होकर तो हम टूटी हुयी ज़ंजीर हैं

    bahut khoob.masha allah!!

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  2. Behtareen ashar! Anek shubhkamnayen!

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  3. जाने किस उन्वान से लिखी हुयी तहरीर हैं
    हम तो इक अख़बार से काटी हुयी तस्वीर हैं
    १. उन्वान- शीर्षक

    लफ्ज़ हैं उलझे हुए जुमले भी बेतरतीब हैं
    साजिशी ज़हनों की हम लिखी हुयी तफसीर हैं
    Bahut sundar!

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  4. subhan allah....
    lagta hai kisi purane shayar ki gazal padh rahe ho..
    v. nice

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  5. good asif bhai....agaz to hota hai anjaam nahi hota....
    jab meri kahani main tera naam nahi hota...

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  6. इस नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  7. आसिफ़ साहब, बहुत अच्छे अश’आर हैं...
    हां.....थोड़ा निखार चाहते हैं...बहर के एतबार से.
    बहरहाल, बहुत अच्छी कोशिश के लिये मुबारकबाद.

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