हर कतरा मेरे खूं का आवाज़ दे रहा है
हर ज़र्रा मेरी जां का आवाज़ दे रहा है
मंजिल के भूले भटके नाराज़ रास्तों को
ये रिश्ता तेरा मेरा आवाज़ दे रहा है
चल उठ के फिर से चल तो अनजान से सफ़र
हर लम्हा आने वाला आवाज़ दे रहा है
उलझन में क्यूं हो यारो मिट जायेगा अंधेरा
नन्हा सा इक जुगनू आवाज़ दे रहा है
अहसां वो मुझ पे कर के नाराज़ हो गया है
दिल मेरा उसको रह रह आवाज़ दे रहा है
Sunday, August 15, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अहसां वो मुझ पे कर के नाराज़ हो गया है
ReplyDeleteदिल मेरा उसको रह रह आवाज़ दे रहा है
बहुत खूब !
बेहद प्रभावशाली पोस्ट !
samay हो तो अवश्य पढ़ें:
पंद्रह अगस्त यानी किसानों के माथे पर पुलिस का डंडा
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html
"इक कदम गलत उठा राह-ए-शौक में,
ReplyDeleteमंज़िल तमाम उम्र मुझे ढ़ूंढ़ती रही..."
किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ReplyDeleteये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोखा है सब मगर फिर भी
हज़ार बार ज़माना उधर से गुज़रा है
नयी नयी सी है कुछ तेरी रह गुज़र फिर भी