Monday, April 11, 2011

डरता कहाँ हूँ!

दिल कि बातें करता कहाँ हूँ
दम उसका मैं भरता कहाँ हूँ

उसको मुझसे उम्मीदें क्यूँ
अब मैं उसपे मरता कहाँ हूँ

उसको थी कब मेरी परवाह
मैं उसका कुछ लगता कहाँ हूँ

मेरी आँखें सूखी हैं क्या
मैं पानी से भरता कहाँ हूँ

माना हैं पैरों में रस्सी
पर यूँ भी मैं चलता कहाँ हूँ

कैसा रस्ता कैसी मंजिल
ऐसी चाहत करता कहाँ हूँ

अब वो मेरा क्या कर लेगा
अब मैं उस से डरता कहाँ हूँ

Wednesday, January 5, 2011

तोड़ बैठा मरासिम!!

सूरज को जुगनू दिखाना चाहता हूँ
मैं अपने क़द को बढ़ाना चाहता हूँ

जो मेरे सर को झुकाना चाहता है
मैं उसके दर पे भी जाना चाहता हूँ

वो तो मुझ से सब मरासिम तोड़ बैठा
लेकिन मैं रिश्ता निभाना चाहता हूँ

उस कि दुनिया तो पुरानी हो गयी
मैं अपनी दुनिया बसाना चाहता हूँ


वो दिल कि कीमत लगाना चाहता है

मैं उसकी धड़कन बढ़ाना चाहता हूँ

आदत बेमिसाल रखता है!!

वो अपने दिल में मलाल रखता है
जो अपने लब पे सवाल रखता है

उस से ही सब को शिकायतें भी हैं
वो ही जो सब का ख्याल रखता है

हासिल है उस को प्यार दुनिया का
रिश्ता जो सब से बहाल रखता है

जिस को ताक़त पे भरोसा हो अपनी
दुश्मन का जीना मुहाल रखता है

कैसे कह दें वो हसीन कितना है
कुदरत का सारा जमाल रखता है

दुनिया भी उस को सताती है यारो
आदत जो अपनी बेमिसाल रखता है



Thursday, December 30, 2010

तो अच्छा था

आसां अपनी रह करता मैं तो अच्छा था
यूँ मुश्किल में ना घिरता मैं तो अच्छा था

तेरी आँखें, तेरी जुल्फें, तेरे जलवे
ये अरमां गर ना करता मैं तो अच्छा था

तुझ से मिल कर तो मैं रोता रहता हूँ
तुझ को खोकर भी हँसता मैं तो अच्छा था

ये कैसी बेबसी है, ये कैसी बेकली है
तेरी ख्वाहिश ना करता मैं तो अच्छा था

मुझे दुनिया ने पूछा, ना पूछा रब ने
तेरी खातिर ना मरता मैं तो अच्छा था




Sunday, August 15, 2010

आवाज़ दे रहा है!

हर कतरा मेरे खूं का आवाज़ दे रहा है
हर ज़र्रा मेरी जां का आवाज़ दे रहा है

मंजिल के भूले भटके नाराज़ रास्तों को
ये रिश्ता तेरा मेरा आवाज़ दे रहा है

चल उठ के फिर से चल तो अनजान से सफ़र
हर लम्हा आने वाला आवाज़ दे रहा है

उलझन में क्यूं हो यारो मिट जायेगा अंधेरा
नन्हा सा इक जुगनू आवाज़ दे रहा है

अहसां वो मुझ पे कर के नाराज़ हो गया है
दिल मेरा उसको रह रह आवाज़ दे रहा है

Wednesday, March 3, 2010

हम तो इक अख़बार से

जाने किस उन्वान से लिखी हुयी तहरीर हैं
हम तो इक अख़बार से काटी हुयी तस्वीर हैं
१. उन्वान- शीर्षक

लफ्ज़ हैं उलझे हुए जुमले भी बेतरतीब हैं
साजिशी ज़हनों की हम लिखी हुयी तफसीर हैं
1.तफसीर- व्याख्या

फूल से भी नाज़ुक हैं अगर समझा गया
और अगर छेड़ा गया तो फिर हमीं शमशीर हैं

मुत्तहिद होते अगर तो दुनिया हमारे बस में थी
मुन्तशिर होकर तो हम टूटी हुयी ज़ंजीर हैं
१.मुत्तहिद- इकठ्ठा, २.मुन्तशिर- बिखरा हुआ

उनसे अपने मुआमले भी हल ना आसिफ हो सके
और दुनिया की नज़र में साहिबे तदबीर हैं
1. साहिबे तदबीर- गहरी सोच समझ वाला


बारिशों के मौसम में

बारिशों के मौसम में बादलों कि छाँव में
फिर मुझे वो याद आये इन हसीं फिजाओं में

शायद अपनी जुल्फों को उसने खोल रखा है
भीनी भीनी खुशबू है आज इन हवाओं में

हम तुम्हें बतायेंगे प्यार किसको कहते हैं
शहर से कभी आना तुम हमारे गाँव में

ये सजा मिली हमको अपनी साफगोई की
हैं जुबान पर ताले बेड़ियाँ हैं पाँव में

दिल को जिस से मिलने की आस भी नहीं आसिफ
रोज़ याद आता है मुझ को वो दुआओं में